Gautam Buddha Motivational Story: मगध देश के जंगलों में एक खूंखार डाकू का राज हुआ करता था। वह डाकू जितने भी लोगों की हत्या करता था, उनकी एक-एक उंगली काटकर माला की तरह गले में पहन लेता। इसी वजह से डाकू को सभी अंगुलिमाल के नाम से जानते थे।
अंगुलिमाल का नाम ‘अहिंसक’ रखा गया था. कहा जाता है कि कोशल नरेश सम्राट के प्रसेनजित दरबार के राजपुरोहित के घर पर अहिंसक का जन्म हुआ था. उसके जन्म से पूरे घर पर आनंद ही आनंद था. लेकिन जब परंपरा के अनुसार बालक के जन्मकुंडली बनवाने के लिए सभी राजज्योतिषी के पास गए तो, भविष्याणी सुनकर हैरान रह गए.
राजज्योतिषी ने बताया कि जिस अशुभ योग में बालक का जन्म हुआ है ऐसे लोग डाकू या हत्यारे बनते हैं. यह सुनकर सभी के पैरों तले जमीन खिचक गई. तब परिवार वालों ने युगप्रचलित तर्क-वितर्कों का सहारा लेते हुए यह निश्चय किया कि क्यों ना बालक का नाम ‘अहिंसक’ रख दिया जाए. यदि उसे बार-बार इस नाम से पुकारा जाएगा तो उसके मन में कभी हिंसा की भावना नहीं आएगी.
अहिंसक बचपन से ही सीखने, समझने, पढ़ने में मेधावी और कुशाग्र था. वह अपने अन्य साथियों से सभी मामले में आगे रहता था. उसके गुणों से केवल गुरु ही नहीं बल्कि आचार्य की पत्नी यानी गुरुमाता थी प्रसन्न रहती थीं और उससे सौम्य व्यवहार रखती थी. इस कारण अहिंसक के कुछ साथियों को उससे ईर्ष्या होने लगी.
सभी अहिंसक से उलझने की कोशिश करते थे, लेकिन जीत अहिंसक की ही होती है. तब एक दिन उसके साथियों ने अहिंसक को नीचा दिखाने की योजना बनाई और आचार्य के मन में अहिंसक के प्रति घृणा भाव उत्पन्न करने के लिए कह दिया कि, अहिंसक गुरुमाता के प्रति कुदृष्टि रखता है.
यह सुनकर आचार्य जी का क्रोध नियंत्रण में नहीं रहा और उन्होंने अहिंसक से कहा कि, तुममे ब्राह्मण पुत्र कहलाने की योग्यता नहीं है. आचार्य ने अहिंसक को आदेश दिया कि तुम्हारी अंतिम शिक्षा तभी पूरी होगी, जब तुम सौ व्यक्तियों की ऊंगलियां काटकर लाओगे और तभी तुम्हें दीक्षा मिलेगी. आचार्य के आदेश का अहिंसक इसका धर्मानुकूल पालन करने लगा और हत्यारा बन गया.
अहिंसक, डाकू अंगुलिमाल कैसे बना – Gautam Buddha Motivational Story
अहिंसक को डाकू अंगुलिमाल कहा जाता है. क्योंकि आचार्य के आदेश पर वह लोगों को माकर उनकी ऊंगलिया काटने लगा. वह श्रावस्ती के जंगल में जाकर लोगों की हत्याएं करने लगा. वह जितनी हत्याएं करता था उनकी ऊंगलिया काटकर उसे मालाओं में पिरो लेता था, जिससे हत्याओं की गिनती की जा सके और ऊंगलिया गायब न हो. इसी के कारण उसे अंगुलिमाल का नाम मिला.
मगध देश के आसपास के सभी गांवों में अंगुलिमाल का आतंक था। एक दिन उसी जंगल के पास के ही एक गांव में महात्मा बुद्ध पहुंचे। साधु के रूप में उन्हें देखकर हर किसी ने उनका अच्छी तरह स्वागत किया। कुछ देर उस गांव में रुकते ही महात्मा बुद्ध को थोड़ा अजीब-सा लगा। तभी उन्होंने लोगों से पूछा, ‘आप सभी लोग इतने डरे और सहमे-सहमे से क्यों लग रहे हैं?’
सबने एक-एक करके अंगुलिमाल डाकू द्वारा की जा रही हत्याओं और उंगुली काटने के बारे में बताया। सभी दुखी होकर बोले कि जो भी उस जंगल की तरफ जाता है, उसे पकड़कर वो डाकू मार देता है। अब तक वो 99 लोगों को मार चुका है और उनकी उंगुली को काटकर उन्हें गले में माला की तरह पहनकर घूमता है। अंगुलीमाल के आतंक की वजह से हर कोई अब उस जंगल के पास से गुजरने से डरता है।
इन सभी बातों को सुनने के बाद भगवान बुद्ध ने उसी जंगल के पास जाने का फैसला ले लिया। लेकिन वे मौन धारण करते हुए जंगल की ओर चलते गए. जैसे ही भगवान बुद्ध जंगल की ओर जाने लगे, तो लोगों ने कहा कि वहां जाना खतरनाक हो सकता है। वो डाकू किसी को भी नहीं छोड़ता। आप बिना जंगल गए ही हमें किसी तरह से उस डाकू से छुटकारा दिला दीजिए।
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भगवान बुद्ध सारी बातें सुनने के बाद भी जंगल की ओर बढ़ते रहे। कुछ ही देर में बुद्ध भगवान जंगल पहुंच गए। तभी पीछे से आवाज आई, ‘रुक जा, कहां जा रहा है?’भगवान बुद्ध ने उसकी बातों को अनसुना कर दिया। फिर गुस्से में डाकू बोला, ‘मैंने कहा रुक जाओ।’ तब भगवान ने उसे पलटकर देखा कि लंबा-चौड़ा, बड़ी-बड़ी आंखों वाला आदमी जिसके गले में उंगलियों की माला थी, वो उन्हें घूर रहा था। उसके डरावने रूप को देख भी बुद्ध शांत और सरल थे. बुद्ध ने मधुर स्वर में कहा- ‘मैं तो ठहर गया, भला तू कब ठहरेगा?
बुद्ध की निडरता और चेहरे पर तेज देख अंगुलिमाल ने कहा- ‘हे सन्यासी! क्या तुम्हें मुझसे डर नहीं लग रहा?, देख मैंने लोगों को मारकर उनके ऊंगलियों की माला पहनी है।’
बुद्ध बोले-‘ भला तुझसे क्या डरना, डरना ही है तो उससे डरो, जो सच में ताकतवर हो.’ इस पर अंगुलिमाल बोला- ‘मैं एक बार में दस लोगों का सिर काट सकता हूं।’
बुद्ध बोले – ‘यदि तुम सचमुच ताकतवर हो तो जाओ उस पेड़ के दस पत्ते तोड़ लाओ।’ अंगुलिमाल ने तुरंत दस पत्ते तोड़े और बोला – ‘इसमें क्या है? कहो तो मैं पेड़ ही उखाड़ लाऊं।’
महात्मा बुद्ध ने कहा – ‘नहीं, पेड़ उखाड़ने की जरूरत नहीं है। यदि तुम वास्तव में ताकतवर हो तो जाओ इन पत्तियों को पेड़ में जोड़ दो।’
अंगुलिमाल क्रोधित हो गया और बोला – ‘भला कहीं टूटे हुए पत्ते भी जुड़ सकते हैं।’
महात्मा बुद्ध ने कहा – ‘तुम जिस चीज को जोड़ नहीं सकते, उसे तोड़ने का अधिकार तुम्हें किसने दिया?
भगवान बुद्ध ने कहा कि मैं यही तुम्हें समझाना चाहता हूं कि जब तुम्हारे पास किसी चीज को जोड़ने की ताकत नहीं है, तो तुम्हें किसी वस्तु को तोड़ने का अधिकार भी नहीं है। किसी को जीवन देने की क्षमता नहीं, तो मारने का हक भी नहीं।’
यह सबकुछ सुनकर अंगुलिमाल डाकू की आंखें खुल गईं और उसने कहा, ’आज के बाद से मैं कोई अधर्म वाला कार्य नहीं करूंगा।’
रोते हुए अंगुलिमाल डाकू भगवान बुद्ध के चरणों पर गिर गया। उसी दिन अंगुलिमाल ने बुराई का रास्ता छोड़ा और वो बहुत बड़ा संन्यासी बन गया।
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कहानी से सीख
सही मार्गदर्शन मिलने पर व्यक्ति बुराई की राह को छोड़कर अच्छाई को चुन लेता है।
उम्मीद करते हैं आपको हमारी Motivational Story “गौतम बुद्ध और डाकू अंगुलिमाल की कहानी” कहानी पसंद आयी होगी ।
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