Gautam Buddha Story In Hindi

Gautam Buddha Story in Hindi: मौन रहने के फायदे मौन रहने की शक्ति गौतम बुद्ध स्टोरी इन हिंदी

Gautam Buddha Story in Hindi: एक समय की बात है , एक गांव में गौतम बुद्ध का बहुत बड़ा आश्रम था। वहां पर एक प्रसिद्ध बौद्ध गुरु रहते थे।  वहां पर उनका एक शिष्य था जो की बहुत बोलने वाला था। वह हर समय इधर-उधर की बातें करता था। जब वह दान लेने के लिए जाता था, तो हर घर से एक नई  कहानी लेकर आता था। और आश्रम के दूसरे शिष्यों को सुनता था।

वो हर समय एक शिष्य की दूसरे शिष्य से बुराई और चुगली करता रहता था और दूसरों के सामने अच्छा बनने का प्रयास करता रहता था। खुद के मुंह से ही खुद की तारीफ करता रहता  था और हमेशा ही खुद को गुरु के सामने सबसे बुद्धिमान और उत्तम साबित करने का प्रयास करता रहता था। वह खुद को सभी शिष्यों से अलग और श्रेष्ठ मानता था।

उसका कहना था कि मैं एक अमीर घर का बालक हूं ,अगर मैं चाहता तो एक आरामदायक और सुविधाओं से भरा जीवन जी सकता था, लेकिन मैं वह सब छोड़कर यहां आया,क्योंकि मुझे सत्य की खोज करनी है खुद को जानना है, जीवन को जानना है इसीलिए मेरा त्याग तुम सबसे बड़ा है ।

एक दिन गुरु ने आश्रम के सभी शिष्यों को बुलाकर कहा आप सभी को अगले एक महीने के लिए  कोई संकल्प लेना है इससे आपकी संकल्प शक्ति मजबूत होगी और आप में आत्म शक्ति का संचार होगा। आप सभी अपने समर्थ के अनुसार कोई भी संकल्प ले सकते हैं। और यदि एक महीने से पूर्व किसिका भी संकल्प टूट जाएगा तो वह अपनी दिनचर्या में वापस आ जायेगा।

सभी शिष्यों ने अपनी शक्ति के अनुसार छोटे-बड़े संकल्प लिए, और गुरु को अपने-अपने संकल्प के बारे में  बोलकर वहां से चले गए, लेकिन वह शिष्य जो खुद को सबसे अलग और बड़ा दिखाना चाहता था, वह सीधे गुरु की कुटिया में पहुंच गया और बोला मैं कोई छोटा-मोटा संकल्प नहीं लेना चाहता बल्कि खुद की ही जैसे एक बड़ा और महान संकल्प लेना चाहता हूं। कृपया आप ही बताएं मुझे क्या संकल्प लेना चाहिए?

उसकी यह बात सुनकर गुरु मुस्कुराए ,और बोले, क्या तुम मेरे द्वारा दिए गए संकल्प को पूरा कर पाओगे? क्या तुम्हारे लिए उसे पूरा करना संभव होगा? शायद नहीं, वह तुम्हारे लिए संभव नहीं है तुम उसे पूरा नहीं कर पाओगे इसीलिए तुम खुद ही कोई संकल्प ढूंढो।

शिष्य ने कहा नहीं गुरुदेव आप जो भी संकल्प मुझे देंगे मैं उसे पूरा करूंगा, गुरु ने कहा ठीक है तो तुम अगले 1 महीने तक चुप रहो मुंह से एक शब्द भी नहीं निकलो यही तुम्हारा संकल्प है।  शिष्य ने कहा गुरुदेव यह भी कोई संकल्प है, यह तो बहुत ही आसान है, एक महीने तक चुप ही रहना है ,आप कोई बड़ा संकल्प दीजिए जो मेरी योग्यता के लायक हो जिसे पूरा करने में मुझे समस्या हो, गुरु ने कहा पहले तुम यही  संकल्प को तो पूरा करके दिखाओ।

Gautam Buddha Story In Hindi

शिष्य ने गुरु की बात मान ली और वह इस समय चुप हो गया और पलट कर कुटिया से बाहर चला गया ,पहले उसे चुप रहना बहुत आसान लग रहा था, उसने एक दिन तो जैसे तैसे चुप रहकर काट लिया लेकिन दूसरे दिन, से उसके मन में ना बोलने का बोझ बढ़ने लगा, तीसरे दिन उसे भारीपन महसूस होने लगा और, चौथे दिन उसके अंदर एक अजीब सी बेचैनी होने लगी क्योंकि आसपास आश्रम के सभी शिष्य एक दूसरे से बातें कर रहे थे।

यह देख वह पूरा दिन उदास रहा।  इसी तरीके से कुछ दिन और बीते और वह शिष्य बीमार पड़ गया उसका सर  फटा जा रहा था, उसका खाने-पीने तक का मन नहीं कर रहा था वह सिर्फ बोलना चाहता था, वह गुरु के पास गया और उनके सामने बैठ कर लिखकर उन्हें बताया गुरुदेव मैं बोलना चाहता हूं , मुझे सांस नहीं आ रही मेरा दम घुटा जा रहा है मैं अंदर ही अंदर पागल हुआ जा रहा  हूं , मैं क्या करूं संकल्प तोड़ दूं क्या?

यह पढ़कर गुरु मुस्कुराए ,और बोले संकल्प तोड़ने के लिए ही होते हैं लेकिन जो अपने संकल्प को पूरा कर लेता है वही अपनी आंतरिक शक्ति को बढ़ाता है और जो अपनी आंतरिक शक्ति को बढ़ाता है, वह समाज की कल्याण करता है। संकल्प का लेना भी तुम्हारे हाथ में था और इसे तोड़ना भी तुम्हारे ही हाथ में है। तुम्हारे बहुत से भाई अपने संकल्प को तोड़कर अपनी पुरानी दिनचर्या पर वापस आ चुके हैं ,अगर तुमसे नहीं हो पा रहा तो तुम भी संकल्प तोड़कर अपनी पुरानी दिनचर्या पर वापस जा सकते हो।

लेकिन याद रहे अगर आज तुम इस छोटे से संकल्प को नहीं संभाल पा रहे तो तुम अपनी बाकी की पूरी जिंदगी को कैसे संभाल सकोगे बाकी फैसला पूरी तरह से तुम्हारे हाथों में है।

गुरु की यह बात, उस शिष्य के दिल में चोट कर गई, वह बिना कुछ बोले वहां से वापस चला गया और खुद को अपनी कुटिया में बंद कर लिया वह केवल अपने जरूरी कामों के लिए ही कुटिया से बाहर निकलता था, बाकी सारे समय कुटिया के अंदर ही बैठा रहता।

15 दिन बीत चुके थे और आश्रम के लगभग सभी शिष्यों का संकल्प अब तक टूट चुका था, लेकिन उसका संकल्प अभी भी जारी था संकल्प लेने के बाद से अब तक उसने एक शब्द भी नहीं बोला था ,सारा आश्रम हैरान था कि इतना बोलने वाला इंसान चुप कैसे हो गया।

15 दिन बीतने के बाद वह दोबारा अपने गुरु के पास गया और लिखकर बताया है गुरुदेव मैं बाहर से तो चुप हूं लेकिन मेरे भीतर बहुत सी आवाज है बहुत सी चीज, पुकार ,और शिकायतें है, मैं अंदर ही अंदर बात करता रहता हूं मेरा मन तरह-तरह के प्रश्न पूछता रहता है , मैं बाहर से जितना मौन हूं  भीतर से उतने ही शोर शराबा  से भरा हुआ हूं, क्या इस तरह से मेरा संकल्प अभी भी जारी है ?

गुरु ने कहा तुम्हारा संकल्प अभी भी जारी है लेकिन जब तक लोगों की यह आवाज  तुम्हारे कानों में गूंजते रहेंगे, तुम्हारा मन बोलता रहेगा क्योंकि इसे तो आदत है बोलने की, तुम भले ही बाहर से चुप रहो लेकिन तुम अंदर ही अंदर बोलते रहोगे तुम्हें इन बातों से इन आवाजों से दूर जाना पड़ेगा शिष्य गुरु को प्रणाम कर वहां से चला जाता है और सुबह होते ही अपनी कुटिया छोड़कर जंगल की तरफ चला जाता है।

कई दिन बीत जाते हैं संकल्प का समय भी पूरा हो जाता है लेकिन शिष्य लौटकर नहीं आया आश्रम में सभी को डर था की कहीं उसको जंगली जानवर ने खा न लिया।  उसे ढूंढने की बहुत कोशिश की गई लेकिन वह कहीं नहीं मिला सभी गुरु भाइयों ने मान लिया था कि जंगली जानवरों ने उसे अपना शिकार बना लिया है। लेकिन गुरु को ऐसा नहीं लगता था।

एक दिन आश्रम का एक अन्य शिष्य गुरु के पास आया और बोला गुरुदेव हमारे उश अधिक बोलने वाले भाई के साथ क्या हुआ होगा, क्या जानवर ने उसे मार दिया होगा, गुरु ने कहा हो सकता है कि जानवरों ने उसे अपना शिकार बना लिया हो लेकिन उसके न लौटने की एक दूसरी वजह भी हो सकती है शायद उसे वह मिल गया है जिसके लिए वह गया था फिर शिष्य ने पूछा गुरुदेव क्या ज्यादा बोलना इतना हानिकारक होता है गुरु ने कहा इंसान के जीवन के बहुत सारे दुखों में से एक दुःख यह भी है कि वह कभी चुप नहीं रह सकता हमेशा कुछ ना कुछ बोलता ही रहता है। सिर्फ हमारे बोलने के कारण हमारे आधे से ज्यादा दुख पैदा होते हैं।

परिवार के अधिकतर झगड़ों की वजह हमारा बेमतलब बोलना ही होता है। हम में से कोई भी चुप नहीं रहना चाहता। हम बस सामने वाले को सुना देना चाहते हैं। जो भी हमारे मन में है सब निकाल कर उसके मन में बैठा देना चाहते हैं। उसे समझा देना चाहते हैं कि देख तू गलत है और मैं सही। और इस तरीके से सब एक दूसरे की  शारी गलत बातों को ग्रहण कर रहे हैं। इस तरीके से सुनने और सुनाने का यह काम जिंदगी भर चलता रहता है।

लेकिन इस ना समझी में हम अपना समय अपना जीवन अपनी समझ और सबसे महत्वपूर्ण वक़्त को हम खो देते हैं, लेकिन इसके बदले हमें मिलता क्या है? कुछ नहीं सब व्यर्थ और बर्बाद हो जाता है, इस पागलपन में हमने क्या खो दिया इसका एहसास केवल कुछ ही लोगों को हो पता है, बाकी लोग जैसे उन्हें अपने आने का पता नहीं वैसे ही उन्हें अपने जाने का भी पता नहीं चल पाता। शिष्य ने कहा तो फिर इसका समाधान क्या है ?

गुरु ने कहा पूरी जागरूकता के साथ अपने विचारों को देखना ही एकमात्र तरीका है। सारी मानसिक समस्याओं का वर्तमान में रहकर चिंतन करना, पूरी जागरूकता के साथ अपना काम करना, जिंदगी में चमत्कारिक बदलाव ला देता है। उसके बाद वह शिष्य गुरु से अपने प्रश्नों का उत्तर प्राप्त कर, उनको प्रणाम करके वहां से चला गया।

उस शिष्य को आश्रम छोड़कर गए हुए 3 महीने  हो चुका था, लेकिन उसकी कोई खबर न थी तब तो सभी गुरु भाइयों ने भी उसके वापस लौटने की उम्मीद छोड़ दी थी लेकिन एक दिन वह आश्रम लौट आता है। उसे देखकर सभी के आश्चर्य और खुशी का ठिकाना ना रहा, लेकिन अब वह  वैसा नहीं था जैसा गया था। वह बिल्कुल बदल चुका था। वह कुछ और ही बनकर वापस आया था। उसके अंदर एक गजब का बदलाव महसूस किया जाता था। उसके चेहरे पर एक गजब का ठहराव और आंखों में बनी शांति थी।

आश्रम में आते ही सभी गुरु भाइयों ने उसे चारों तरफ से घेर लिया और बातें करने लग गए वह भी अपने गुरु भाइयों से बातें करने लगा उससे बात करने वाले सभी ने यह अनुभव किया कि अब वह पहले जैसा उतावला और बातूनी नहीं रह गया था।

उसके मुंह से एक-एक शब्द बहुत ही सरल और मधुरता के साथ निकल रहे थे। थोड़ी देर तक गुरु भाइयों से बात करने के बाद वह सीधा गुरु की तरफ चला गया।

उसने गुरु के चरण छुए और कहा गुरुदेव क्या मैं अभियान मैं हूं? क्या अभी मेरा संकल्प जारी है? गुरु ने कुछ देर तक शिष्य की आंखों में बड़े ध्यान से देखा और कहा हां तुम अभी भी अभियान मैं हो। तुम्हारे मुंह से एक भी शब्द निकल नहीं रहा और तुम्हारा संकल्प अभी भी जारी है।

शिष्य ने कहा गुरुदेव जब मैं आश्रम से गया तो मैं मुंह से तो चुप था लेकिन मेरे अंदर बहुत सी आवाज हो रही थी। मन में बहुत से प्रश्न थे और वह बंद नहीं हो रहे थे। तो मैं जंगल में चला गया इस उम्मीद से की वहां मुझे शांति मिलेगी और मेरे मन की बकबक कम हो जाएगी। लेकिन मैं जितना एकांत में जाता गया मेरे अंदर की आवाज उतनी ही तेज होती गई।  मेरे भीतर की पुरानी से पुरानी आवाज मुझे सुनाई देने लगी। तब जाकर मैंने महसूस किया कि मैं कितना गलत कर रहा था। जब मैं अपने परिवार वालों दोस्तों को और गुरु भाइयों को बुरा भला कहता था तो उसे समय मुझे लगता था कि मैं सही कह रहा हूं, जब मैं गुरु भाइयों की एक दूसरे से चुगली करता था और उनका मजाक बना ता था तब भी मुझे यही लगता था कि मैं उनसे बेहतर हूं, और मैं सही कर रहा हूं, लेकिन उस दिन मैंने पहली बार महसूस किया कि मैं कितना गलत बोलता था।

काफी दिनों तक यह सारे शोर और शिकायतें मेरे अंदर चलती रही। लेकिन धीरे-धीरे करके एक दिन यह सारी आवाज  मेरे अंदर से समाप्त हो गई। अब मैं भीतर से भी मौन हो गया। उशी घने जंगल में कोई बोलने वाला था नहीं और भीतर कोई आवाज बची ही नहीं थी। और मैं उशी दिन पहली बार मौन का सही अर्थ समझा। मेरे चारों तरफ बहुत शांति थी। हालांकि अभी भी कुछ आवाज आ रही थी जो पहले भी आती थी। लेकिन मैं उन्हें सुन नहीं पता था।

पर अब वह सभी आवाज जो मुझे स्पष्ट रूप से सुनाई दे रही थी, वो थी, हवा के चलने की आवाज, चिड़ियों के चहकने की आवाज, और पानी के बहाने की आवाज। यह सभी आवाज ही मैंने पहली बार पूरे होशपूर्वक सुनी, अपने चारों तरफ इतनी शांति मैंने पहले कभी महसूस नहीं की थी, तो इस शांति को भंग करने के लिए मैंने पहली बार अपने मुंह से कोई शब्द निकला।

मैं चिल्लाया है ईश्वर यह कैसी शांति है सभी कुछ इतना शांत क्यों है ऐसा क्या हो गया। लेकिन मेरे चिल्लाने के बाद भी शांति भंग नहीं हुई। सब कुछ पहले जितना ही शांत था, बाहर भी और भीतर भी, उतना शांत रहा।

हे गुरुदेव मैं अपने गुरु भाइयों से बात की मैं आपसे बात की मैं बोल रहा हूं मैं चल रहा हूं मैं सब कुछ देख रहा हूं लेकिन मैं अपने भीतर एकदम एकांत और मौन में हूं। जब मैं खुद में भी शोर करना चाहता हूं तब भी एकांत में ही होता हूं अब सब दिखाई पड़ने लगा है सब सुनाई पड़ने लगा है।

गुरु ने कहा जब तक हम बाहर की तरफ बोलते रहेंगे भीतर अशांति ही रहेंगे लेकिन जिस दिन हम भीतर की तरफ मुड़ जाएंगे तब हमारे मुंह से कुछ भी निकलेगा हम शांति रहेंगे। दुनिया में जितनी भी बुराइयां है ज्यादातर हमारे बोलने से ही उत्पन्न होती है क्योंकि हम चुप रहना नहीं चाहते हम जितनी जरूरत है उससे कहीं ज्यादा बोलते हैं। हम सामने वाले को सुनना नहीं चाहते बल्कि उसकी बोलती बंद कर देना चाहते हैं उसे समझा देना चाहते हैं कि मैं कौन हूं मैं क्या कर सकता हूं। और यही हमारी जिंदगी का मकसद बनकर रह जाता है। हमारी सारी ऊर्जा व्यर्थ के बोलने में बर्बाद होती रहती है। ऐसे ही समझ में लोगों का जीवन दुखों से भर जाता है।

जो हमेशा एक दूसरे से शिकायत में लगे रहते हैं कभी एक दूसरे को सुनना नहीं चाहते, समझना नहीं चाहते हैं। और चुप रहना तो उन्होंने कभी सीखा ही नहीं क्योंकि चुप रहना उन्हें छोटा महसूस करवाता है।

दुनिया की सभी लड़ाइयां का कारण हमारा बोलना ही है। इसलिए हमें सिर्फ उतना ही बोलना चाहिए जितना जरूरी हो। क्योंकि व्यर्थ का बोलना ऊर्जा को नष्ट करना है। और यह बोलना ही हमें कभी अपने भीतर की ओर लौट ने नहीं देता है, क्योंकि यह हमें बाहर की ओर खींच कर रखता है,और बाहर है ही क्या इस संसार के अलावा?

लेकिन अगर अपने भीतर के संसार की ओर मोड़ना है तो इस मुंह को बंद ही रखना चाहिए इसीलिए जितने भी बुद्ध हुए आत्मज्ञानी हुए वह सभी एकांत की ओर भागे ताकि उन्हें ज्यादा ना बोलना पड़े ज्यादा सुना ना पड़े। वह एकांत में रहे और शांत रहे इसीलिए आसानी से भीतर की यात्रा कर पाए लेकिन अगर कोई चाहे तो इस संसार में रहकर भी एकांत में रह सकता है शांत रह सकता है। लेकिन इसके लिए उन्हें अपनी ऊर्जा बचाने होगी जिसे वह अब तक अपने व्यर्थ के शब्दों में बर्बाद कर रहे थे।

इस कहानी की सीख यही है कि व्यर्थ का बोलना ऊर्जा को नष्ट करना है ।और यह बोलना ही हमें कभी अपने भीतर की ओर लौट ने  नहीं देता , क्योंकि यह हमें बाहर की ओर झुकाए रखता है और जिन्हें भीतर की यात्रा करनी है उन्हें अपने मुंह को बंद ही रखना चाहिए। चुप रहने में अद्भुत शक्ति है। यदि हम सही समय पर सही शब्दों का प्रयोग करें तो हम अपने जीवन को सकारात्मक दिशा में बदल सकते हैं। मौन रहकर हम अपनी आत्मा की गहराई में जा सकते हैं और भीतर से शांति का अनुभव कर सकते हैं। इससे हम अपने विचारों और भावनाओं को साफ़ करके अपने जीवन को सकारात्मक बना सकते हैं। हमें चुप रहने की कला सीखनी चाहिए ताकि हम अपने शब्दों का सही प्रयोग करके अपना और दूसरों का जीवन बेहतर बना सकें।

उम्मीद करते हैं आपको हमारी Motivational Story  “मौन रहने के फायदे मौन रहने की शक्ति”  कहानी पसंद आयी होगी।

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